नेशनल पेंशन सिस्टम (NPS), ओल्ड पेंशन स्कीम (OPS), और यूनिफ़ाइड पेंशन स्कीम (UPS): एक व्यापक विश्लेषण

भारत में पेंशन व्यवस्था के तीन प्रमुख स्तंभों पर चर्चा चल रही है: ओल्ड पेंशन स्कीम (OPS), न्यू पेंशन सिस्टम (NPS), और हाल ही में सरकार द्वारा मंजूर की गई यूनिफ़ाइड पेंशन स्कीम (UPS) यह लेख इन तीनों योजनाओं का व्यापक विश्लेषण करेगा, उनकी विशेषताओं, फायदों, कमियों, और उनके प्रभावों पर चर्चा करेगा।

 

UPS-NPS-OPS


ओल्ड पेंशन स्कीम (Old Pension Scheme):

 

ओल्ड पेंशन स्कीम (OPS) वह योजना है जिसे 2004 से पहले तक सरकारी कर्मचारियों के लिए लागू किया गया था। इस योजना के अंतर्गत, कर्मचारियों को रिटायरमेंट के बाद उनकी अंतिम वेतन का एक निश्चित प्रतिशत पेंशन के रूप में मिलता था। OPS को इस बात के लिए सराहा गया कि यह कर्मचारियों के लिए निश्चित और सुरक्षित पेंशन प्रदान करता था, जो उनकी सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा को सुनिश्चित करता था।

 

OPS की प्रमुख विशेषताएँ:

सुरक्षित और सुनिश्चित पेंशन: OPS के तहत, कर्मचारी को रिटायरमेंट के बाद अंतिम वेतन का 50% से 60% तक पेंशन के रूप में मिलता था। यह राशि सुनिश्चित थी, और इसमें कोई उतार-चढ़ाव नहीं होता था, जो कर्मचारियों के लिए एक निश्चित आर्थिक सुरक्षा का प्रतीक था।


डीए का समावेश: महंगाई भत्ते (DA) का समावेश OPS में पेंशन राशि में किया जाता था। इससे पेंशन राशि समय के साथ बढ़ती थी, जिससे कर्मचारियों को महंगाई से बचाने में मदद मिलती थी।


अंशदान नहीं: OPS में कर्मचारियों को पेंशन के लिए कोई अंशदान नहीं देना पड़ता था। पेंशन पूरी तरह से सरकार द्वारा वित्त पोषित होती थी, जो कि एक बड़ी राहत थी।

 

OPS की कमियाँ:

सरकारी वित्त पर बोझ: OPS के तहत कर्मचारियों को दी जाने वाली पेंशन राशि एक निश्चित खर्च के रूप में सरकारी खजाने पर भारी पड़ती थी। इस योजना से सरकार के वित्तीय बोझ में वृद्धि होती थी, जो दीर्घकालिक आर्थिक स्थिरता के लिए एक चुनौती थी।


सततता की कमी: समय के साथ कर्मचारियों की संख्या और पेंशन की आवश्यकता में वृद्धि होने के कारण, OPS के तहत भविष्य में पेंशन का भुगतान करना चुनौतीपूर्ण हो सकता था। इसके कारण सरकार ने एक नई योजना की आवश्यकता महसूस की।

 

न्यू पेंशन सिस्टम (New Pension Scheme)

 

2004 में, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने OPS की जगह न्यू पेंशन सिस्टम (NPS) को लागू किया। NPS को इस उद्देश्य से लाया गया कि सरकारी वित्तीय बोझ को कम किया जा सके और पेंशन व्यवस्था को अधिक सतत और निवेश आधारित बनाया जा सके।

 

NPS की प्रमुख विशेषताएँ:


अंशदान आधारित पेंशन: NPS के तहत कर्मचारियों और सरकार दोनों का अंशदान अनिवार्य कर दिया गया। कर्मचारी और सरकार दोनों अपने मूल वेतन और महंगाई भत्ते (DA) का 10% अंशदान करते हैं, जिसे बाद में बढ़ाकर सरकारी अंशदान को 14% कर दिया गया।


निवेश का प्रावधान: NPS में कर्मचारी के अंशदान को विभिन्न पेंशन फ़ंड मैनेजर्स द्वारा संचालित निवेश योजनाओं में निवेश किया जाता है। यह निवेश 'निम्नतम' से 'उच्चतम' जोखिम के आधार पर किया जा सकता है। इससे पेंशन राशि के अधिक या कम होने की संभावना बनती है।


रिटायरमेंट के बाद विकल्प: NPS के तहत रिटायरमेंट के बाद कर्मचारी अपनी कुल पेंशन राशि का 60% निकाल सकते हैं, जबकि शेष 40% राशि को पेंशन फंड में निवेश करना अनिवार्य होता है, जिससे उन्हें मासिक पेंशन मिलती है।

 

NPS की कमियाँ:


अस्थिर पेंशन: NPS के तहत पेंशन राशि निश्चित नहीं होती। यह शेयर मार्केट और अन्य निवेश के प्रदर्शन पर निर्भर करती है, जिससे पेंशन राशि में उतार-चढ़ाव होता रहता है। कई कर्मचारियों ने शिकायत की है कि उन्हें उम्मीद से बहुत कम पेंशन मिल रही है।


डीए का अभाव: NPS में महंगाई भत्ता (DA) का समावेश नहीं होता, जिससे पेंशन राशि समय के साथ महंगाई के अनुरूप नहीं बढ़ती। यह कर्मचारियों के लिए एक बड़ी चिंता का विषय है।


अंशदान की आवश्यकता: NPS के तहत कर्मचारियों को अपने वेतन का एक हिस्सा अंशदान के रूप में देना पड़ता है, जो कि OPS की तुलना में एक अतिरिक्त आर्थिक बोझ है।

 

यूनिफ़ाइड पेंशन स्कीम (Unified Pension Scheme)

 

UPS को हाल ही में केंद्र सरकार ने मंजूरी दी है, जो 1 अप्रैल 2025 से लागू होगी। UPS को NPS और OPS दोनों का मिश्रण माना जा रहा है, लेकिन इस पर भी विवाद है। UPS को लेकर कर्मचारियों और यूनियनों में कई तरह की आशंकाएं और सवाल उठे हैं।

 

UPS की प्रमुख विशेषताएँ:


अंशदान का विकल्प: UPS में कर्मचारियों को NPS और UPS के बीच विकल्प चुनने की आजादी दी गई है। इसके तहत वे अपनी पसंद के अनुसार अपनी पेंशन योजना का चयन कर सकते हैं।


डीए का समावेश: UPS में महंगाई भत्ते (DA) का समावेश किया गया है, जिससे पेंशन राशि समय के साथ बढ़ती रहेगी। यह UPS को NPS से बेहतर बनाता है।


न्यूनतम पेंशन गारंटी: UPS में न्यूनतम 10 साल की सेवा के बाद 10,000 रुपये पेंशन की गारंटी दी गई है। यह उन कर्मचारियों के लिए एक बड़ी राहत है, जो रिटायरमेंट के बाद आर्थिक सुरक्षा की चिंता में थे।


सर्विस के अनुसार पेंशन: UPS में पेंशन की गणना कर्मचारी के अंतिम सेवा वर्ष की बेसिक सैलरी के औसत का आधा हिस्सा पेंशन के रूप में देने के आधार पर की जाएगी। यह सुनिश्चित करता है कि कर्मचारियों को एक निश्चित और सुरक्षित पेंशन मिले।

 

UPS की कमियाँ और चिंताएँ:


अंशदान की अस्पष्टता: UPS में कर्मचारियों के अंशदान को लेकर स्पष्ट जानकारी नहीं दी गई है, जिससे कर्मचारियों में असमंजस की स्थिति बनी हुई है। कर्मचारियों का कहना है कि UPS को पूरी तरह से OPS जैसा बनाया जाए, जहां उन्हें कोई अंशदान नहीं करना पड़े।


सर्विस की सीमा: UPS में फुल पेंशन के लिए 25 साल की सेवा की शर्त रखी गई है, जो अर्द्धसैनिक बलों के कर्मचारियों और अन्य क्षेत्रों के कर्मचारियों के लिए चिंता का विषय है, जहां वे 20 साल में ही रिटायर हो जाते हैं।


कर्मचारी यूनियनों का विरोध: UPS को लेकर कर्मचारी यूनियनों में असंतोष व्याप्त है। उनका कहना है कि सरकार ने UPS को लागू करने से पहले उनके साथ कोई परामर्श नहीं किया, जो कि कर्मचारियों के हितों के खिलाफ है। उन्हें लगता है कि सरकार ने एकतरफा फैसला लिया है।

 

कर्मचारी यूनियनों और विशेषज्ञों की राय

 

कई कर्मचारी यूनियनों ने UPS की आलोचना की है। उनके अनुसार, UPS में कई खामियां हैं, जो कर्मचारियों के लिए असुरक्षा का कारण बन सकती हैं। नेशनल मूवमेंट फॉर ओल्ड पेंशन स्कीम (NMOPS) के राष्ट्रीय अध्यक्ष विजय कुमार बंधु ने UPS को NPS से भी खराब बताया है। उनका कहना है कि सरकार ने कर्मचारियों के साथ कोई परामर्श नहीं किया और बिना किसी विमर्श के UPS को लागू किया गया।

 

कर्मचारी यूनियनों की चिंताएँ:


अस्पष्टता और परामर्श का अभाव: विजय कुमार बंधु का कहना है कि UPS की सिफारिश कब और कैसे की गई, इसकी जानकारी कर्मचारियों को नहीं दी गई। कमिटी की रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गई और ही कर्मचारियों से परामर्श किया गया।


न्यूनतम पेंशन की चिंता: UPS में कर्मचारियों को अंतिम सेवा वर्ष की बेसिक सैलरी के औसत का आधा हिस्सा पेंशन के रूप में देने की बात कही गई है, लेकिन इसे पर्याप्त नहीं माना जा रहा। कर्मचारी यूनियनों का कहना है कि NPS के तहत जो 10% अंशदान कर्मचारी करते थे, वह भी UPS में नहीं मिलेगा, जिससे पेंशन राशि कम हो जाएगी।


समय सीमा की चुनौती: UPS में 25 साल की सेवा की शर्त रखी गई है, जो अर्द्धसैनिक बलों और अन्य क्षेत्रों के कर्मचारियों के लिए अनुचित है। वे मानते हैं कि UPS में यह शर्त उनके हितों के खिलाफ है और इसे बदला जाना चाहिए।

 

विशेषज्ञों की राय:


अर्थशास्त्री की राय: UPS को लेकर विशेषज्ञों की राय भी बंटी हुई है। कुछ विशेषज्ञ UPS को एक बेहतर विकल्प मानते हैं, जो कर्मचारियों के लिए एक निश्चित और सुरक्षित पेंशन प्रदान कर सकता है। वहीं, कुछ विशेषज्ञ UPS की खामियों की ओर भी इशारा करते हैं।


अर्थशास्त्रियों का दृष्टिकोण: अर्थशास्त्रियों का मानना है कि UPS एक संतुलित पेंशन योजना हो सकती है, जो OPS और NPS की कमियों को दूर कर सकती है। लेकिन इसे और अधिक स्पष्ट और पारदर्शी बनाने की आवश्यकता है। सरकार को कर्मचारियों के साथ परामर्श कर UPS को और बेहतर बनाना चाहिए।

 

UPS का अर्थव्यवस्था और सामाजिक सुरक्षा पर प्रभाव

 

UPS के लागू होने के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था और कर्मचारियों की सामाजिक सुरक्षा पर इसके प्रभाव को समझना आवश्यक है। UPS का उद्देश्य कर्मचारियों की सामाजिक सुरक्षा को सुनिश्चित करना है, लेकिन इसे लागू करने के बाद इसके दीर्घकालिक प्रभावों का आकलन करना आवश्यक होगा।

 

अर्थव्यवस्था पर प्रभाव:

 

वित्तीय स्थिरता: UPS को लागू करने के बाद सरकारी वित्त पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा, यह एक महत्वपूर्ण सवाल है। UPS के तहत पेंशन की गारंटी दी गई है, जो सरकारी खजाने पर बोझ बन सकती है। सरकार को UPS के वित्तीय बोझ का आकलन कर इसे संतुलित करने की योजना बनानी होगी।


निवेश का प्रावधान: NPS के तहत निवेश का प्रावधान था, जिससे पेंशन राशि में उतार-चढ़ाव होता था। UPS में निवेश का क्या प्रावधान होगा, इसे स्पष्ट करना आवश्यक है। सरकार को UPS को निवेश आधारित बनाने की बजाय इसे सुरक्षित और सुनिश्चित पेंशन प्रदान करने की दिशा में ध्यान देना चाहिए।

 

सामाजिक सुरक्षा पर प्रभाव:

 

कर्मचारियों की सुरक्षा: UPS के तहत कर्मचारियों की सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करना आवश्यक है। सरकार को UPS को और अधिक स्पष्ट और पारदर्शी बनाना चाहिए, ताकि कर्मचारियों को उनके भविष्य की चिंता हो।


सामाजिक सुरक्षा का विस्तार: UPS के तहत कर्मचारियों के लिए सामाजिक सुरक्षा का विस्तार करने की आवश्यकता है। सरकार को UPS को और अधिक व्यापक और समावेशी बनाना चाहिए, ताकि सभी कर्मचारियों को इसका लाभ मिल सके।

 

UPS के भविष्य का रास्ता

 

UPS एक नई पेंशन योजना है, जिसे सरकार ने हाल ही में मंजूरी दी है। UPS को लेकर कर्मचारियों और विशेषज्ञों में मिलाजुला रुख है। हालांकि, UPS को लेकर कई चिंताएं और सवाल उठे हैं, जिन्हें दूर करना आवश्यक है। UPS को सफल बनाने के लिए सरकार को कर्मचारियों के साथ परामर्श कर इसे और बेहतर बनाना चाहिए।

 

UPS एक महत्वपूर्ण कदम है, जो भारतीय पेंशन व्यवस्था में एक नया मोड़ ला सकता है। UPS को लागू करने से पहले सरकार को सभी पक्षों की चिंताओं को ध्यान में रखते हुए इसे और अधिक स्पष्ट, पारदर्शी और समावेशी बनाना चाहिए। केवल तभी UPS सफल हो पाएगा और कर्मचारियों का विश्वास जीत पाएगा।

 

भविष्य की दिशा:


सरकार को UPS के प्रभावों का दीर्घकालिक आकलन करना चाहिए और इसे और अधिक सशक्त बनाने के लिए कदम उठाने चाहिए। UPS के सफल क्रियान्वयन के लिए कर्मचारियों की भागीदारी और समर्थन आवश्यक है। सरकार को कर्मचारियों की चिंताओं को दूर कर UPS को एक संतुलित और सुरक्षित पेंशन योजना के रूप में स्थापित करना चाहिए।

 

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